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Wednesday, 27 September 2017

मेरे बचपन के खेल और उनकी यादें ! ( Mera Bachpan )


बहुत याद आता है बचपन, जब हम सब दोस्तों के साथ तरह तरह के खेल खेला करते थे. बड़ा मजा आता था स्कूल से आते ही घर पे स्कूल बेग रख के खेलने चले जाया करते थे. और उनके साथ कभी कोई खेल तो कभी कोई खेल खेलते थे . कैसे बीत जाते हैं पल? कैसे बचपन बस एहसास बनकर रह जाता है। जिसे हर कोई जीना चाहता है। खिल उठता है मन, जब उन गलियों से होकर बचपन गुजरता है। कभी मुस्कान तो कभी छलक उठते हैं आंसू। ऐसी ही कई यादों  से सजा होता है बचपन। अगर आज का गेम्स देखें और पुराने समय के देखेंगे तो आपको सपनों सा फील होगा, लेकिन जो बात लगंड़डीप, गुल्ली डंडा, लट्टू, सिंतोलिया में थी, वो आज कल के गेम्स में नहीं मिलेगी। तो चलिए आज कुछ पुराने गेम्स के बारे में बात करके, आपके और अपने बचपन की याद ताजा की जाएं।

1. छुपम-छिपाई  


अक्सर इस तरह के गेम में हम दोस्तो से रुठ जाते थे, क्योंकि कोई घंटो दोस्तों को ढूंढना नहीं चाहता था । आजकल बच्चे इसे खेलना भूल गए है। वैसे भी एक घर में ढ़ेर सारे बच्चे अब मिलते भी नहीं। किताबों में डूबे रहना बच्चों की आदत बन गई है,इससे छूटते ही बच्चे मोबाइल में भीड़ जाते है।

2. कंचे खेलना


कंचे खेलने में बहुत मजा आता था. छुट्टी वाले दिन सुबह से ही कंचे लेके घर से निकल जाते थे और सरे दोस्तों के साथ मजे से खेलते थे.  कंचे खेलने से ज्यादा उसे जितने में मजा आता था। जितना ज्यादा कंचे उतना ज्यादा खुशी, जितने कम कंचे उतना मन उदास।

3. चोर-सिपाही


ये भी अनोखा गेम था।  जीत ने पर दोस्तो से पार्टी लेने का अपना अलग ही मजा था। साथ ही जो चोर होता था उसमें एक अलग ही डर होता था और बिना बात के तब तक हंसते थे, जब तक चोर पकड़ा ना जाए। इसमें कागज के चार टुकड़े करके उसपर चोर, सिपाही, राजा और मंत्री  होते थे। सबको फोल्ड करके फेंका जाता था फिर खेल शुरू होता था।

4. पहिया गाड़ी


जिन बच्चों को साइकिल नहीं मिलते थे, वे बेकार पहिया को गाड़ी बनाकर खेलते थे और कम्पिटिशन में  चलाते थे और उनमें एक दूसरे से आगे निकले की होड़ रहती थी। बड़ा मजा आता था दौड़ने में .

5. गिटी फोड़-पिट्टो(सिंतोलिया) 


गिटी फोड़-पिट्टो बहुत सरल और सस्ता गेम था, इस खेल को स्कूल से आके शाम को सभी दोस्तों के साथ मिलके खेला करते थे ! इस खेल को २ टीम में खेला जाता था ! बस थोड़ी गिट्टी इक्ट्ठा करों और जब तक गिट्टी इक्ट्ठी ना हो तब तक पिट्टो।

6. गिल्ली-डंडा 


क्रिकेट का ओल्ड वर्जन गिल्ली डंडा ज्यादातर ब्वॉयज ने बचपन में खेला होगा। गुल्ली डंडा खेलने के लिए हम अपने माँ बाबू जी से डांट भी खाते थे ! पर इस खेल का अलग ही मजा था । उसको बयां करना मुश्किल होगा।

7. लट्टू खेलना


लट्टू नाम सुनते ही मन लट्टू की तरह नाचने लगा होगा। जरा याद कीजिए जब मुहल्ले के 4-5 बच्चे मिलकर लट्टू खेलते थे और किसी साथी की लट्टू नचाने में पहले गिर जाए तो कितना मजा आता है। उस समय बच्चों को रंग-बिरंगे लट्टू में ही मजा आता था। दिनभर रस्सी लपेटकर लट्टू लेकर रहना कितना अच्छा लगता था, भले ही इसके लिए कितनी डांट पड़ी हो।

8. आँख मिचोली


आँख मिचोली बड़ा ही मजेदार खेल था सभी मोहल्ले के साथी मिलके इस खेल को खेलते थे ! इस खेल में एक लड़के की आँखों पे कपडा बांध देते थे और फिर वो सबको छूता था ! बड़ा ही मजा आता था !

9. खो खो खेलना 


इस खेल का अलग ही मजा था! इस खेल को स्कूल में भी खिलाया जाता था ! बड़े ही अजीब खेल थे बचपन के ! जिनको खेलके सभी बचे बड़े ही खुश रहते थे !

10. रस्सा कसी 


रस्सा कसी  इस खेल को खेलने के लिए एक रस्सी होती थी जिसका एक छोर एक टीम के पास और दूसरा छोर दूसरी टीम के पास होता था ! फिर दोनों टीम एक दूसरे को खींचती थी जो टीम कमजोर पड़ती वो टीम उनसे हर जाती ! बड़ा ही मजेदार खेल था !


ऐसे थे मेरे बचपन के खेल और मेरा बचपन! अब वो बचपन पता नहीं कहा खो गया ! आज कल के बच्चे तो बस लैपटॉप गेम मोबाइल गेम व्हाट्सएप्स फेसबुक इन्ही में सबकी लाइफ सिमट के रह गई ! बहुत मिस करते है हम उस बचपन को काश फिरसे वही बचपन देखने को मिले !


अब बदल गयी तस्वीर 


आज के समय में गेम्स की तस्वीर एकदम बदल गई है। ज्यादातर बच्चे इंडोर गेम्स में इंटरेस्ट लेते है। मोबाइल, लैपटॉप पर उनका मन लगता है। एनर्जेटिक गेम्स से आजकल के बच्चे दूर रहना चाहते है। ये सब इनवारमेंट का असर है। पहले के गेम्स बच्चों में स्फूर्ति और ताजगी लाते थे और बच्चे फिजीकली स्ट्रॉग होते थे। देखा दोस्तों किस तरह चेंज हो गया है सब कुछ ! अब वो बचपन देखने को कही नहीं मिलता  ! 

सही कहा है जगजीत सिंह जी ने अपनी गजल में - 
ये दौलत भी ले लो, ये शोहरत भी ले लो, 
भले छीन लो मुझसे मेरी जवानी, 
मगर मुझको लौटा दो बचपन का सावन, 
वो कागज़ की कश्ती, वो बारिश का पानी।

जी हां ! इन पंक्तियों में अल्हड़ बचपन को बहुत ही प्यारे ढ़ंग से संजोया गया है, क्या आपको अपना बचपन याद आता है ! बड़ा ही मजेदार था हमारा बचपन !

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